वक़्त तेरी ये अदा मैं आज तक समझा नहीं
मेरी दुनिया क्यूँ बदल दी ,मुझको क्यूँ बदला नहीं
इस नतीजे पर पहुँचने में बड़ी मुद्दत लगी
तुझसे अछे तो बहुत हैं ,पर कोई तुझ सा नहीं
दूर जाती एक परछाई ,हवा में हिलता हाथ
जुदाई का वो मंज़र मैं अभी तक भुला नहीं
फिर मुझे क्यूँ लग रहा है ,ये मंजिल दूर है
इस सफ़र में सच यही है ,मैं कहीं ठहरा नहीं
एक नए अंदाज़ से होगी बसर अब ज़िन्दगी
मेरे हिस्से की ज़मीन पर आस्मां -साया नहीं
hum jo bikhre to roshni ki tarah
,aur simte to teergi ki tarah
meri ankhen jo unse chaar hui,
wo nazar aaye ajnabi ki tarah
ho gaye gair -e -shaista,
jo abhi kal tak the aadmi ki tarah
unki nazron mein hum bure hi sahi
wo bhale hain to pyaar ki hi tarah.
शाम इ फ़िराक अब न पूछ ,आयी और आ के टल गयी
दिल था की फिर बेहाल गया ,जान थी की फिर संभल गयी
बज़्म-इ -ख्याल में तेरे हुस्न की शम्मा जल गयी
दर्द का चाँद बुझ गया ,हिज्र की रात ढल गयी
...
जब तुझे याद कर लिया ,सुबह महक महक गयी
जब तेरा ग़म जगा लिया ,रात मचल मचल गयी
दिल से तो हर मुआमला कर के चले थे साफ़ हम
कहने में उनके सामने ,बात बदल बदल गयी (jaari)
आखिरी शब् के हमसफ़र फैज़ न जाने क्या हुए
रह गयी किस जगह सबा ,सुबह किधर निकल गयी
शाम इ फ़िराक...!
आँखों से लगा लेने के काबिल न समझना
मैं कांच का टुकड़ा हूँ मुझे दिल न समझना
राहों में बिखर जाऊँगा पलकों से छलक कर
मैं खाब इ सफ़र हूँ मुझे मंजिल l न समझना
पल भर के लिए भी मैं अगर तुझको भुला दूं
उस din को मेरी उम्र में शामिल नहीं करना
लहरों का भरोसा नहीं किस वक़्त बदल जाये
जिस नाव में बैठो उसे साहिल न समझना
हो के पल भर जो किसी फूल से खुशबू निकले
तो समझ लो के वो पहन के फूल के गेसूं निकले
आप बीमार को आये क्यूँ आये तसल्ली देने
कोई अपना भी है ये देखने आंसू निकले
ये चाँद जो रातों को मेरे साथ जला है ,
शायद मेरी तन्हाई का गम बाँट रहा है
डूबी है मेरी अंगुलियाँ अपने ही लहू में ,
ये कांच के टुकड़ों को उठाने की सजा है
आँखों में कभी फूलों केखिलने का समां था ,
अब कानों में टूटे हुए पत्तों की सदा है
ये बात सही कुछ उसे एहसास नहीं है
,वो भी मेरे ख्वाबों की तरह टूट गया है
ये चाँद ...
आते आते मेरा नाम सा रह गया
उसके होंठों पे कुछ काँपता रह गया
वो मेरे सामने ही रह गया और मैं
रस्ते की तरह देखते ही रह गया
झूठ बोलने वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था की सच बोलता रह गया
आंधियों के इरादे तो अछे न थे
ये दिया कैसे जलता रह गया .
आँखों को इंतज़ार का देकर हुनर चला गया
चाह था एक शख्स को ,जाने किधर चला गया
दिन की वोह महफिलें गयीं ,रातों के रतजगे गए
कोई समेत कर मेरे शामो सहर चला गया
झोंका है एक बहार का रंगे ख्याल यार भी
हर सू बिखर बिखर गयी ,खुशबू जिधर चला गया
उसके ही दम से दिल में आज धुप भी चांदनी भी है
देके वो अपनी याद के शम्स o कमर चला गया
कूंचा कूंचा दर बदर कबसे भटक रहा है दिल
हमको भुला के राह वो अपनी डगर चला गया ...
Yun toh saaqi har tarah ki tere maikhaane mein hai,
Or woh bhi thodi si jo in aankhon ke paimaane mein hai,
Sab samajhtaa hun teri ishwaakeri aye saaki,
Kaam karti hai nazar naam hai paimaane ka...........
ले उड़ा फिर कोई ख्याल हमें ,
साकिया साकिया संभल हमिएँ.
पी रहे हैं की एक आदत है,
वर्ना इतना नहीं मलाल हमें
साकिया साकिया संभाल हमें ...
कभी बन संवर के जो आ गए
तो बहारे हुस्न दिखा गए
मेरे दिल पे दाग लगा गए
ये नया शगूफा खिला गए
...कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल
कोई क्या किसी से लगाये दिल
वो जो बेचते थे दवाए दिल
वो दुकान अपनी बढा गए
मेरे पास आते थे दम बदम
वो जुदा न होते थे एकदम
ये दिखाया चर्ख ने क्या सितम
की मुझी से से आँख चुरा गए
यही शौक था के हमें दम बदम
के बहार देखेंगे अब के हम
यूँ ही छूटे कैदे कपास से हम
तो सुना के खिज़ा के दिन आ गए
कभी बन संवर के...
वो ख्वाब था बिखर गया,ख्याल था मिला नहीं
मगर ये दिल को क्या हुआ ,ये क्यूँ बुझा पता नहीं
हर एक दिन ,उदास दिन ,तमाम शब् उदासियाँ
किसी से क्या बिछड़ गए के जैसे बचा नहीं
वो साथ था तो मंजिलें चराग थी
कदम कदम सफ़र में अब ,कोई भी लब दुआ नहीं
है शोर सा हर तरफ,की सरहदों की जंग में
ज़मीन पे आदमी नहीं,फलक पे क्या खुदा नहीं
वो ख्वाब था...
मेरी दुनिया क्यूँ बदल दी ,मुझको क्यूँ बदला नहीं
इस नतीजे पर पहुँचने में बड़ी मुद्दत लगी
तुझसे अछे तो बहुत हैं ,पर कोई तुझ सा नहीं
दूर जाती एक परछाई ,हवा में हिलता हाथ
जुदाई का वो मंज़र मैं अभी तक भुला नहीं
फिर मुझे क्यूँ लग रहा है ,ये मंजिल दूर है
इस सफ़र में सच यही है ,मैं कहीं ठहरा नहीं
एक नए अंदाज़ से होगी बसर अब ज़िन्दगी
मेरे हिस्से की ज़मीन पर आस्मां -साया नहीं
hum jo bikhre to roshni ki tarah
,aur simte to teergi ki tarah
meri ankhen jo unse chaar hui,
wo nazar aaye ajnabi ki tarah
ho gaye gair -e -shaista,
jo abhi kal tak the aadmi ki tarah
unki nazron mein hum bure hi sahi
wo bhale hain to pyaar ki hi tarah.
शाम इ फ़िराक अब न पूछ ,आयी और आ के टल गयी
दिल था की फिर बेहाल गया ,जान थी की फिर संभल गयी
बज़्म-इ -ख्याल में तेरे हुस्न की शम्मा जल गयी
दर्द का चाँद बुझ गया ,हिज्र की रात ढल गयी
...
जब तुझे याद कर लिया ,सुबह महक महक गयी
जब तेरा ग़म जगा लिया ,रात मचल मचल गयी
दिल से तो हर मुआमला कर के चले थे साफ़ हम
कहने में उनके सामने ,बात बदल बदल गयी (jaari)
आखिरी शब् के हमसफ़र फैज़ न जाने क्या हुए
रह गयी किस जगह सबा ,सुबह किधर निकल गयी
शाम इ फ़िराक...!
आँखों से लगा लेने के काबिल न समझना
मैं कांच का टुकड़ा हूँ मुझे दिल न समझना
राहों में बिखर जाऊँगा पलकों से छलक कर
मैं खाब इ सफ़र हूँ मुझे मंजिल l न समझना
पल भर के लिए भी मैं अगर तुझको भुला दूं
उस din को मेरी उम्र में शामिल नहीं करना
लहरों का भरोसा नहीं किस वक़्त बदल जाये
जिस नाव में बैठो उसे साहिल न समझना
हो के पल भर जो किसी फूल से खुशबू निकले
तो समझ लो के वो पहन के फूल के गेसूं निकले
आप बीमार को आये क्यूँ आये तसल्ली देने
कोई अपना भी है ये देखने आंसू निकले
ये चाँद जो रातों को मेरे साथ जला है ,
शायद मेरी तन्हाई का गम बाँट रहा है
डूबी है मेरी अंगुलियाँ अपने ही लहू में ,
ये कांच के टुकड़ों को उठाने की सजा है
आँखों में कभी फूलों केखिलने का समां था ,
अब कानों में टूटे हुए पत्तों की सदा है
ये बात सही कुछ उसे एहसास नहीं है
,वो भी मेरे ख्वाबों की तरह टूट गया है
ये चाँद ...
आते आते मेरा नाम सा रह गया
उसके होंठों पे कुछ काँपता रह गया
वो मेरे सामने ही रह गया और मैं
रस्ते की तरह देखते ही रह गया
झूठ बोलने वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था की सच बोलता रह गया
आंधियों के इरादे तो अछे न थे
ये दिया कैसे जलता रह गया .
आँखों को इंतज़ार का देकर हुनर चला गया
चाह था एक शख्स को ,जाने किधर चला गया
दिन की वोह महफिलें गयीं ,रातों के रतजगे गए
कोई समेत कर मेरे शामो सहर चला गया
झोंका है एक बहार का रंगे ख्याल यार भी
हर सू बिखर बिखर गयी ,खुशबू जिधर चला गया
उसके ही दम से दिल में आज धुप भी चांदनी भी है
देके वो अपनी याद के शम्स o कमर चला गया
कूंचा कूंचा दर बदर कबसे भटक रहा है दिल
हमको भुला के राह वो अपनी डगर चला गया ...
Yun toh saaqi har tarah ki tere maikhaane mein hai,
Or woh bhi thodi si jo in aankhon ke paimaane mein hai,
Sab samajhtaa hun teri ishwaakeri aye saaki,
Kaam karti hai nazar naam hai paimaane ka...........
ले उड़ा फिर कोई ख्याल हमें ,
साकिया साकिया संभल हमिएँ.
पी रहे हैं की एक आदत है,
वर्ना इतना नहीं मलाल हमें
साकिया साकिया संभाल हमें ...
कभी बन संवर के जो आ गए
तो बहारे हुस्न दिखा गए
मेरे दिल पे दाग लगा गए
ये नया शगूफा खिला गए
...कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल
कोई क्या किसी से लगाये दिल
वो जो बेचते थे दवाए दिल
वो दुकान अपनी बढा गए
मेरे पास आते थे दम बदम
वो जुदा न होते थे एकदम
ये दिखाया चर्ख ने क्या सितम
की मुझी से से आँख चुरा गए
यही शौक था के हमें दम बदम
के बहार देखेंगे अब के हम
यूँ ही छूटे कैदे कपास से हम
तो सुना के खिज़ा के दिन आ गए
कभी बन संवर के...
वो ख्वाब था बिखर गया,ख्याल था मिला नहीं
मगर ये दिल को क्या हुआ ,ये क्यूँ बुझा पता नहीं
हर एक दिन ,उदास दिन ,तमाम शब् उदासियाँ
किसी से क्या बिछड़ गए के जैसे बचा नहीं
वो साथ था तो मंजिलें चराग थी
कदम कदम सफ़र में अब ,कोई भी लब दुआ नहीं
है शोर सा हर तरफ,की सरहदों की जंग में
ज़मीन पे आदमी नहीं,फलक पे क्या खुदा नहीं
वो ख्वाब था...
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